जब सामना होगा तो बात भी हो जाएगी,
पुरानी अटकी हुई वो रात भी हो जाएगी।
जवाब खोजेंगे दो लफ्ज़ अपने तरीके से,
बदले चेहरों से मुलाक़ात भी हो जाएगी।
कब तक रखोगे रद्दी अपने नज़्मों की
जब चिंगारी बढ़ेगी तो राख भी हो जाएगी।
कितनी झुर्रियां लद चुकी हैं पालते पालते,
आईने खुद बोलेंगे तो हिसाब भी हो जाएगी।
अगले चौराहे से बदलेंगे कारवां-ए-ज़िंदगी,
चाँद लेकर चलेंगे तो आदाब भी हो जाएगी।
©खामोशियाँ | 21- अप्रैल-2017
(मिश्रा राहुल) (डायरी के पन्नो से)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2017) को
"सूरज अनल बरसा रहा" (चर्चा अंक-2622)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूब
धन्यवाद।
शुक्रिया।
सुंदर ?
धन्यवाद स्वेता जी।