सूनी वादियों से कोई पत्ता टूटा है,
वो अपना बिन बताए ही रूठा है।
लोरी सुनाने पर कैसे मान जाए,
वो बच्चा भी रात भर का भूखा है।
बिन पिए अब होश में रहता कहाँ,
वो साकी ऐसा मैखानो से रूठा है।
मुसाफ़िर बदलते रहे नक्शे अपने,
वो रास्ता भी आगे बीच से टूटा है।
रात फ़लक से शिकायत कौन करे,
कोने का तारा अकेले क्यू रूठा है।
©खामोशियाँ-२०१४/मिश्रा राहुल
(३०-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नों से)
बहुत खूब कहा है।
वाह !.गजल सुनाने का अंदाज बेहद उम्दा है..
वाह बहुत बढ़िया
कल 01/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
बहुत खूबसूरत
Bhut khubsurat line likhi aapne❤❤
बहुत बहुत धन्यवाद मिलन जी