एक खाली
पड़े मकान से
जाने कितनी बार बात हुई…
कई रात
दोनों साथ काटें
सिरहाने तक लगवाए साथ…
रात मे
दियासलाई मार के
कितने अँधेरों को भगाए साथ…
देख आगन
पर कैसे टॉर्च
मार दोनों की तलाशी ले रहा अब्र…
बयार भी
दरवाजे पर कुंडी
पकड़ झूलती नजर आ रही…
सम्मे चिपके
कान लगाए चाह
रहे सुनना हम लोगों की फूस-फूस…
अब खोल
भी दे देख दरीचों
तलक आ पहुचे जुगनू रोते रोते…
देख अब
कहा तू अकेला
सब तो हैं चल आज माना ही ले…
… गमो का जन्मदिन…
~खामोशियाँ©
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