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ख्वाब…!!!
ख्वाब परिंदा ठहरा…
बड़ी आराम से…!!!
उड़ रहा ख्वाइशों के
नीले बैक्ग्राउण्ड मे…!!!
अचानक टकरा गया…
टूट गए पर उसके…!!!
छन्न से बिखर गयी…
मानो सारी कायनात…!!
ओह रूई के गोले…
रंगीन बनते जा रहे…!!!
सूरज पीला मरहम लिए
चाँद ढूढ़िया टॉर्च थामे…!!!
सभी आए हॉस्पिटल मे…
पर कमी हैं किसी की…!!!
मुकद्दर की गाड़ी पंचर हैं…
उसे कोई बुला लाओ…!!!
ख्वाइश…
धूप के साये मे निशान कहाँ आते…
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के…
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे…
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर…
अरमानो की महक…!!!
आज बड़ी दिन बाद बचते बचाते निकल आई धुप हमारे गलियारे में…और अजीब हरकत करने लगती हमारी कलम अचानक जैसे कोई छोटे बच्चे का हाथ पकड़ के कुछ लिखाना चाह रहा हो…!!
यादो के दरीचों से देखो आज
कैसे छन रही महीन किरने…!!
बयार भाग रही उरस के.
वादों से भरी अनसुलझी गुच्छी…!!
पक रहा कही डेऊढ़ी तक आ..
गयी किसीके अरमानो की महक…!!
आखों में चिपकाए ख्वाब आज..
ताप रहा चेहरा मधिम आंच पर…!!
जा पोछ ले लाल हो गया चेहरा फिर ..
पूछुंगा कितने अरमान ख़ाक किया…!!
आकृतियाँ…!!!
देख रहा हैं कितने दर्द से उसे ..
धुधली आकृतियों में खोया हैं क्या ..!!
चेहरा भीगा हैं तेरा अभी तक ..
छुप के तू अभी अभी रोया हैं क्या ..!!
चेहरे पर ख्वाब साफ़ लदे उभर रहे ..
उठकर भी अभी तक सोया हैं क्या ..!!
निकल आये मुसीबतों के पौधे बगीचे में ..
फिर से तूने उधर कुछ बोया हैं क्या ..!!
मातमो में लखते तेरे यादों के दरीचे ..
पुरानी बस्ती ने आज कुछ खोया हैं क्या ..!!
यादों की अंगीठी….
आँखें कोरी थी और कोई बसता गया..
बिछड़े ऐसे की मन मसोसता रहा..!!
फटे ख्वाब की लुगदिया भरी जेबों में..
कोई संजोता गया मैं बिखेरता रहा..!!
जो सबपे बोझ था कहीं छूट गया..
रात निकलती गयी दिन ढलता रहा..!!
कोई और असर था प्यार के साथ भी..
वादे गिनते रहे सफ़र कटता रहा..!!
अँधेरी रात में डाकू दिखे आते..
जुगनू सोये रहे घर लुटता रहा..!!
बचा ना कुछ जली यादों के सिवा..
अंगीठी तपती रही वक़्त सेंकता रहा..!!
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