कहने को तो सारे अपने दिखाई देते हैं,
रात लेटो तो सारे सपने दिखाई देते हैं।
सर्दियों की ये रात भी खामोश है इतनी,
दूर सन्नाटे लिपटे जुगनू दिखाई देते हैं।
बात कहे दें तो कुछ बात भी बन जाएगी,
गुरूर की आगोश में चेहरे दिखाई देते है।
तलाश खत्म ना होगी उम्मीदों की कभी,
हर रोज़ तराजू थामे अपने दिखाई देते हैं।
ज़िंदगी उलझ गयी है लकीरों में इतनी,
आज आवाज़ कहाँ आँसू दिखाई देते है।
बहके कदम वापस क्यूँ लाए ये बता दे,
लौट के फिर से वहीं अपने दिखाई देते हैं।
©कॉपीराइट-खामोशियाँ
मिश्रा राहुल-(२३-नवम्बर-२०१४)
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन
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धन्यवाद !
बहुत सुन्दर!