यादें रूह को अंदर से इतना खोखला बना देती,
खुद ही तस्वीरों से निकलकर रास्ता बना देती।
इंसान गायब हो जाता इस अचानक दामन से,
कीमती होकर जिंदगी इतना सस्ता बना देती।
एहसास इतना पलता रहता उन पुराने खतों में,
जवाब कितने रोज लिखकर वास्ता बना देती।
चुपके से माफी मांग रहे खुले गुलाबी लिफाफे,
हल्की सी होकर भी यादों का बस्ता बना देती।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल | १०-मई-२०१५
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