नज़्म उम्मीदों का भूकंप April 26, 2015 हर शबकई ख्वाब टूटते।हर पलयादों की इमारत ढहती। उम्र भर की कमाई,एक हीपल में बिखर जाती। दबे रहतेमलबे तलेलाखों एहसास। तड़प करदम तोड़ते,जाने कितनीफरियादें। ऐसे तोहर रोज ही आता हैउम्मीदों का भूकंप। Share this:FacebookTwitterWhatsAppPinterestPrint Related