कितनों को हम सर चढ़ाये बैठे हैं….
दिल लगता नहीं पर लगाए बैठे हैं…..!!!
रास्ते कहाँ आज गुलदस्ते थामे….
वादियों के गुलाब मुंह फुलाए बैठे हैं….!!!
नजूमी ले गया जायचा भूल से….
चेहरे इन लकीरों मे उलझाए बैठे हैं….!!!
ज़िंदगी कुछ तेरी थी कुछ मेरी भी….
किस्तों के कई मकान बनाए बैठे हैं…..!!!
©खामोशियाँ-२०१३
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (08-11-2013) "मेरा रूप" (चर्चा मंच 1423) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर .
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Thankyou for keeping regular eyes on my blog….!!!
सुंदर रचना बहुत बधाई।