वक़्त बदला नहीं तो क्या करे,
दिल सम्हला नहीं तो क्या करे….!!!
उम्मीदें थी बड़ी तम्मना भी थी,
दर्द पिघला नहीं तो क्या करे….!!!
रातों को तारें गिने हमने रोज़,
चाँद निकला नहीं तो क्या करे…!!!
जान निकाल दिए जान के लिए,
प्यार पहला नहीं तो क्या करे…!!!
आँखें भिगोई बातें याद करके,
दिल दहला नहीं तो क्या करे…!!!
उम्र बस सहारा ढूंढते रह गयी,
कोई बहला नहीं तो क्या करे…!!!
गैर ही रहा ताउम्र हर आईने से,
अक्स बदला नहीं तो क्या करे…!!!
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // १३-दिसम्बर-२०१४
वक्त की हक़ीकत बयाँ करती सुंदर प्रस्तुति।
…क्या लिखते हैं आप…आपकी रचनाएँ दिल को छू लेतीं हैं.