कई बरस हुए
अब नहीं जाता उस गली से….
चौराहे पे तपती
धूप मे खड़ा लंबा पोल
आजकल मुझे देख मुंह फेर लेता….!!!
पाँव मे लकवा खाए
अभी भी अड़ा खड़ा
गवाह है वो हमारी सारी मुलाक़ातों का…!!!
पर देख उसमे भी
अनगिनत कमी निकाल
आज लोगों ने उसे भी बदल दिया…!!!
साथ ही भस्म
हो गए डायरी से लिपटे अधूरे पत्र….
नज़्म की बॉटल भरी खारी छाछ भी लापता….!!!
कल जाऊंगा तो
इश्तिहार लगाऊँगा….
नाम…रंग…साथ अपनी एल्बम की तस्वीर….!!!
©खामोशियाँ-२०१४
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