बातें जुबान चूमे जरूरी तो नहीं,
तारे जहान घूमे जरूरी तो नहीं।
इशारे कह डालते है बहुत कुछ,
सारे जुबान खोले जरूरी तो नहीं।
निकाल जाते चुप चाप मैदानो से,
हारे निशान छोड़े जरूरी तो नहीं।
रंग फीके पड़ जाते इस धूप में,
गोरे मकान छोड़े जरूरी तो नहीं।
बदलते देते दस्तूर जीने के कभी,
छोरे ईमान छोड़े जरूरी तो नहीं।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२०-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो में)
सुन्दर प्रस्तुति !