बातें सारी आज भी उतनी ही सच्ची हैं,’
अक्ल उसकी अब भी वैसी ही कच्ची है।
ढूंढ कर लाती सारे मेले से अपनी मांगे,
ज़िंदगी जिद्दी सी एक छोटी बच्ची है।
खुशी में झूम-झूमकर सब को बताती,
गमों तालाब में गोते लगाती मच्छी है।
कभी-कभी अनर्गल दिल दुखा ही देती,
यकीन मानो ये दिल की बड़ी अच्छी हैं।
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” जिद्दी-ज़िंदगी ” | मिश्रा राहुल
©खामोशियाँ-२०१५ | ८-अप्रैल-२०१५