लिखी है
थोड़ी बहुत
हमने भी
ज़िन्दगी
की किताब
कुछ टूटे
फाउंटेन पेन*
कुछ लाल
धब्बे मौजूद हैं
पहले ही
पन्ने पर…..!!
तारीखे हैं,
बेहिसाब
एक बगल
पूछती हैं
ढेरों सवाल..!!
दर्ज़ हैं
सूरज की
गुस्ताखियाँ
दर्ज़ हैं
ओस की
अठखेलियाँ…!!
रिफिल*
नहीं
हो पाते हैं
कुछ रिश्ते,
तभी आधे
पन्ने भी
बेरंग से लगते …..!!
*Fountain Pen *Refill
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // १३-दिसंबर-२०१४
इस खूबसूरत सपने को पढकर बस एक शब्द कहा जा सकता है — आमीन!