दो चम्मच बारीक
कटी हुई मुस्कुराहट मे,
हल्की सी मद्धिम आंच पर
कुछ दो चार दाने यादों के छिड़क ।
अंश्कों के तेल मे
छौका लगा उम्मीदों का…
बस कुछ देर ठहरने तो दे,
वादों के कलछुल को
अपनों से गले मिलने तो दे ।
अब ढाँप के रख,
धैर्य के बड़े प्लेट से,
ताकि निकल ना जाये
कुछ एहसास धुआँ बन के ।
सारे मौजूद रहेंगे,
तभी तो बनेगी
ज़िंदगी की लज़ीज़ डिश* ।
(डिश* Dish)
©खामोशियाँ-२०१४
कल 04/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !